अगस्त 2001 में रोपे गए "नई क़लम-उभरते हस्ताक्षर" पौधा आज अपने आपको एक वृक्ष के तौर पे आप सब साहित्य प्रेमियों के सामने है....इसका पहला डिजिटल संस्करण हम आपको उपलब्ध करा रहे हैं....
न कभी साहित्य मरता है न कभी साहित्यकार अगर साहित्यकार मरता है तो उसकी रचनाएं पाठकों के मानस पटल पे जिंदा रहती हैं. और साहित्य कभी मरता ही नहीं है ये तो पीढ़ी दर पीढ़ी एक हाथ से दूसरे हाथ में पहुँचता रहता है .

नीचे दिए गए लिंक से अगस्त 2014 का अंक आप पढ़ सकते हैं....आपकी प्रतिक्रियाओं का हमें इंतज़ार रहेगा ....


http://www.readwhere.com/read/325739/Nai-Kalam-Ubharte-Hastakshar/-2014#dual/1/1

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  नई क़लम - उभरते हस्ताक्षर

 

Shahid Ajnabi

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